यंत्रो का
महत्व -
यन्त्र क्यों बनाये जाते है ? इनका क्या उद्देश्य है ? यन्त्र भगवान् के प्रतिकृति समान होते है जैसे मंत्रो के द्वारा भगवानोँ का आव्हान किया जाता है
ठीक उसी तरह हम यंत्रो को आसान देकर उनको देवी-देवता के रूप मैं पूजा करते है ,इसलिए हमेशा ध्यान रखे ,पूजा स्थान मैं यंत्रो को
आसन पर विराजमान करे और उनको लिटा कर नहीं बल्कि खड़ा करके रखे तथा उनको कलावा {मौली } ऊपर से नीचे की और पहना
कर रखे !
यंत्रो को रोज़ स्नान करवाने की आवश्यकता नहीं होती है , विशेष अवसरों पर उनकी साफ़-सफाई की जा सकती है ,आप रोज़ उनको कुमकुम (देवी यन्त्र )या
केसर चन्दन (देव यन्त्र ) का तिलक लगा सकते है ! चांदी के यंत्रो की पूजा २५ वर्ष तक शुभ होती है ,वहीं ताम्बा ,पीतल जैसे धातु के यंत्रो की पूजा
सिर्फ डेढ वर्ष लाभकारी होती है ! स्वर्ण या रत्न पत्थरो पर निर्मित यन्त्र आजीवन पूजा योग्य होते है ! मिश्रित धातु के बने यंत्रो मैं स्वर्ण-चांदी के प्रतिशत के आधार पर उनकी आयु की गणना की जाएगी !भोजपत्र पर लिखित यन्त्र भी अत्यंत प्रभावशाली होते है ! यहाँ ध्यान देने वाली बात है की हर यन्त्र ,विधि अनुसार अभिमंत्रित होना चाहिए तभी उसकी स्थापना का लाभ है अन्यथा आपकी श्रद्धा अनुसार वो शोभा बढ़ा रहे होते है !
यंत्रो को हमेशा उनके आकार -प्रकार ,अंको व् बीजाक्षरों के द्वारा निर्मित किया गया है ! साधारण और ज्यादा काम आने वाले यन्त्र चौकोर व् अंक निर्मित मिलेंगे जिनको बिना समझे लोग
नाम पढ़कर रखते है लेकिन प्रभावशाली या गोपनीय प्राचीन यंत्रो मैं आकार -प्रकार ,अंको व् बीजाक्षरों का समावेश होता है ,जिनको केवल साधक ही समझ पाते है ,ये बहुत काम के होते है इसलिए मिलते भी प्रार्थना के बाद ही है ! ये चौकोर हों ये आवश्यक नहीं है , यन्त्र हमेशा सही
दिशा व् निर्धारित
स्थान देखकर ही लगाए ! इति शुभ !-SANJAY LODHA JAIN DT.13-04-2021
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